देखा – देखी: यह नाटक उपभोक्तावाद पर व्यंग्य है, अर्थात मीडिया किस प्रकार ऐसी आवश्यकताएं पैदा करता है, जो कभी पूरी नहीं होतीं।
नाटककार मंजुल भारद्वाज